Thursday, April 30, 2015

बाबा की पुत्रजीवक औषधि

मोहन सूर्यवंशी

बाबा रामदेव की पुत्रजीवक औषधि पर हंगामा मच गया है। हमारे देश के विपक्षी दल के नेता कोई रचनात्मक काम तो करते नहीं किंतु सरकार के विरोेध का कोई मौका वह हाथ से नहीं छोड़ते। हर बात पर विरोध करने की आदत ही उन्हें समेटकर इतनी कम सीटों की संख्या पर ले आई है। जब सरकार पर सीधे प्रहार नहीं कर पाते तो सरकार के आस—पास के लोग जो कि उनके निकट है, उन पर ही प्रहार करने लगते हैं। हाफिज और वैदिक की मुलाकात जैसे मामूली बात पर भी तीन दिन तक संसद ठप कर दी थी। अब हाल ही का मामला बाबा रामदेव की 'पुत्रजीवक बीज' औषधि का है। राज्यसभा में जेडी (यू) महासचिव केसी त्यागी ने आरोप लगाया कि बाबा रामदेव की दिव्य फार्मेसी 'पुत्रजीवक बीज' के नाम से बेटा पैदा करने की दवा बेचती है और इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। हालांकि बाबा रामदेव की इस मामले पर तुरंत सफाई भी आ गई। फेसबुक पर उन्होंने बताया कि इस दवाई में पुत्रजीवक औषधि प्रयोग की है। जिसका उपयोग नि:संतान लोग बच्चे पैदा करने के लिए कर सकते हैं। इसका पुत्र से कोई लेना देना नहीं है, इसलिए दवाई का नाम शास्त्र के अनुसार 'पुत्रजीवक' रखा गया है। 


बाबा रामदेव की यह बात सत्य है लेकिन क्या वह यह नहीं जानते कि हमारे देश में कितने अल्पज्ञानी लोग है।  जिस देश में इतने अंधभक्त लोग है कि आसाराम के लड़के को वह कृष्ण का अवतार मानते हो, जो लड़के पैदा करने के लिए लड़कियों को गर्भ में ही मार देते हो। जो लड़का पैदा होने पर खुशी मनाते हो और लड़की के पैदा होने पर गम में डूब जाते हो, वहां पर लोग इस दवाई के नाम से भ्रमित क्यों नहीं होंगे। मोबाइल कंपनी से लेकर देश की नामी गिरामी कंपनियां अपने विज्ञापन में इस तरह लोगों को मूर्ख बना रही है। शब्दों का ऐसा मायाजाल बनाती है कि 10 में से 9 लोग उसमें फंस जाते हैं। कोई बाद में मुकदमा न ठोक सकें इसलिए या तो स्टार का चिन्ह बना देते हैं या कंडीशन अप्लाई कर देते हैं। आज भी गांवों ही नहीं शहरों में भी लोग बीमार होने पर झाड़—फूंक कराने पर ज्यादा विश्वास करते हैं। अभी हाल ही में बाबा रामदेव ने पाकिस्तान से भेजी ग्ई सामग्री में बीफ के मसाले को दिखाकर, पाकिस्तान की आलोचना की थी। लेकिन क्या वह नहीं जानते कि बीफ के मसाले में बीफ नहीं होता सिर्फ शाकाहारी मसाला होता है, जिसे चाहे तो आप सब्जियों में भी डाल सकते हैं। जब बाबा खुद दिग्भ्रमित हो जाते हैं तो 'पुत्रजीवक' औषधि के नाम से जनता क्यों नहीं हो सकती? व्यापारिक उद्देश्य के लिहाज से दवा का यह नाम एक दम उपयुक्त है। इस नाम से यह दवाई खूब जोर—शोर से बिकेगी। गांव—गांव में जो बाबा की दुकान खुली हुई है वहां उनका सामान बेचने वाले लोग, ग्राहकों को यही बताएंगे कि इस खाओ और पुत्र पैदा करो।  लेकिन बाबा जैसे सामाजिक लोगों को इस तरह के नामों में सावधानी बरतनी चाहिए। इस दवाई का नाम जितने जल्दी हो सके बदल दिया जाना चाहिए। 

Monday, April 13, 2015

गैस की काला बाजारी!

गैस की कालाबाजारी दिल्ली में बहुत बढ़ गई हैं। हालांकि सब्सिडी की कैश स्कीम ने गैस की कालाबाजारी को बहुत कम कर दिया है। लेकिन दिल्ली की जनता अभी भी इन गैस एजेंसियों से त्रस्त हैं। इन गैस एजेसियों का वैसा ही हाल है जैसा कि किसी आटो वाले का है। उपभोक्ता को परेशान किए बिना इनका काम नहीं चलता। व्यवहार ऐसा कि जैसा लगता है कि आटो के परमिट और गैस एजेंसी अलॉट करते समय गुंडे होने का प्रमाण पत्र लिया जाता हो। अब तो दिल्ली में 'आप' की सरकार का राज है। लेकिन व्यवस्था में अभी भी कोई परिवर्तन होते दिखाई नहीं दे रहा है। 

गैस बुक कराने पर एक तो उसकी डिलीवरी लेट की जाती है, उपर से कम गैस अलग। दिल्ली में अधिकतर लोग बाहर से आए होते हैं, नौकरीपेशा होते हैं, अकेले रहते हैं। जब गैस वाला आता है तो या तो वह लोग घ्रर पर नहीं होते या फिर घर में अकेली महिलाओं को ही उन्हें हेंडल करना होता है। गैस वाले कभी भी अपने साथ तोलने वाली मशीन नहीं लाते। उपर से इन लोगों का व्यवहार और रहन सहन ऐसा होता है, महिलाएं इनको देखकर ही घबरा जाएं। जो लोग थोड़े दबंग टाइप के होते हैं, उन्हें तो यह बाकायदा पूरी भरी हुई गैस देते हैं लेकिन बाकियों का बुरा हाल करते हैं। उनके सिलेंडर में 3 से 5 किलो गैस कम होना तो मामूली सी बात है। कुछ जागरुक लोग इन्हें तोलने को कहें तो यह लड़ाई झगड़े पर उतर आते हैं। सीधे—साधे लोगों का फायदा उठाकर उन्हें गैस कनेक्शन काट देने तक की धमकी देते है। यहां पर यह बताना जरुरी नहीं कि अधिकतर गैस एजेंसी वाले भी इनके साथ मिले होते हैं।  मुनाफे में बराबर की हिस्सेदारी करते हैं। इस वजह से भी लोग कंम्पलेंट करने के झंझट में नहीं फंसते। कुछ लोग अगर बहुत ही लीगल कार्रवाई पर उतर आएं तो गैस एजेंसी के मालिक उनके घर तक पहुंच जाते हैं। हाथ—पांव जोड़ते हैं या फिर न मानने पर धमकी देने लगते हैं। 


सबसे ज्यादा बुरा अनुभव तो आपको गैस कनेक्शन लेते समय ही हो जाएगा। वहां पर दादा टाइप लोग बैठे होते हैं जो उपभोक्ताओं को भिखारियों की लाइन की तरह ट्रीट करते हैं। यही नहीं गैस कनेक्शन के साथ आपको जबरदस्ती चूल्हा, पाइप  और पता नहीं कया—क्या लेना अनिवार्य कर देते हैं। मुझे तो दिल्ली में गैस कनेक्शन के साथ एजेंसी से चावल भी लेने पड़े थे। इन सब के बाद असली खेल होता है गैस पहुंचाने वालों को। एक—दो बार में वह गैस लेने वाले आदमी को समझ लेते हैं। दंबग हुआ तो उसके घर ठीक—ठाक भरी हुई गैस पहुंचा देंगे बाकियों की तो वह नाक में दम कर देंगे। एक तरफ लीगल गैस कनेक्शन वालों की डिलीवरी करेंगे तो दूसरी तरफ वहीं पर ब्लैक में गैस बेचने वाली दुकानों से लेकर अन्य लोगों तक को भी बेंचेगे। 

अब सवाल उठता है कि जिस देश में लोग भ्रष्टाचार करने के नायाब तरीके खोज लेते हैं। मंत्रालयों तक में मंत्रियों के नाक के नीचे के कागज चोरी कर लेते हैं। उस देश के प्रतिभाशाली लोग क्या गैस की टंकी की एक ऐसी सील नहीं बना सकते कि गैस की चोरी रुक सकें?  क्या हमारी देश की बड़ी—बड़ी गैस सप्लाई करने वाली कंपनियां एक ऐसी सील नहीं बना पा रही कि जिससे गैस चोरी करने वाले पकड़े जाएंगे? हमारे देश के आईटी विशेषज्ञ एक ऐसा साफ्टवेयर नहीं बना पा रहे कि एजेंसी और गैस पहुंचाने वाला बुकिंग होने पर टंकियों का ज्यादा देर अपने पास न रख सकें? मेक इंडिया के नाम पर विदेशी कंपनियों को बुलाकर यह सामान बनवाने वाले नेता कम से कम पहले गैस की एक ठीक—ठाक सील तो बनवा दें? गैस एजेसियों का फर्जीवाड़ा इतने खुलेआम होता है, आखिर इसके लिए जिम्मेदारी सरकारी नौकरों की जिम्मेदारी तय करके, काम न करने पर उन्हें नौकरी से क्यों नहीं निकाला जाता? आखिर उपभोक्ता ही अपनी जान पर रिस्क लेकर इनकी शिकायत क्यों करें? दिल्ली में लाखों गैस कनेक्शन हैं और देश में करोड़ों, अगर 2 किलो गैस प्रति सिलिंडर भी चोरी का आंकड़ा ले तो यह हजारों करोड़ की चोरी होगी। क्या सरकार की इस चोरी को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं है? यह हजारों करोड़ का गोलमाल आखिर कब रुकेगा?