Monday, July 6, 2015

डिजिटल भारत और मोबाइल कंपनियों की मनमानी

मोदी सरकार के बनते ही लोगों को थोड़ी उम्मीदें जगी थीं कि अब उनकी समस्या हल होगी। लेकिन वह अभी भी जस की तस बनी है। अंबानी, मित्तल, बिड़ला पहले कांग्रेस के प्रिय थे अब मोदी के हो गए हैं और अब उनमें एक नया नाम अडानी का भी जुड़ गया है। मोदीजी 'डिजिटल इंडिया' का सपना देख रहे हैं और ये सारी प्राइवेट कंपनियां  उसके जरिए अपनी जेब भरने का सपना देख रही हैं। केंद्रीय दूर संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद सरकार में आने से पहले कांग्रेस की लूट को कोसते थे, अब सरकार में एक साल से मंत्री बनकर यह बता रहे हैं कि पिछली सरकार ने बीएसएनएल को कैसे तबाह किया? उसे कितना लूटा गया। लेकिन 1 साल बाद भी वह यह नहीं बता पाएं हैं कि हमने लूटा हुआ कितना माल वापस करवा लिया और जिन्होंने लुटवाया था वह कौन है, और उन्हें क्या सजा मिल रही है? लेकिन आम नागरिक होने के नाते मैं इस मोदी सरकार से पूछना चाहता हूं कि पहले कि सरकार को तो हमने उसके किये कि सजा दे दी! उसे अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया। लेकिन अब इस सरकार का क्या करें? यह तो एक साल से यूं ही हाथ पर हाथ धरकर बैठी हुई दिखाई देती है। आम आदमी की समस्याएं अभी भी जस की तस बनी हुई है।

मोबाइल कंपनियों ने तो माना लोगों का जीवन दुभर कर रखा है। किसी भी व्यक्ति से पूछ ​लीजिए चाहे वह प्रोपेड ग्राहक हो या पोस्टपेड, उसका बिल निरंतर गति से बढ़ रहा है। यह गति हमारे ट्रेनों की अधिकतम रफ्तार से भी तेज हैं जबकि हमारी रेल अभी भी प्रभु के सहारे प्रभु के भरोसे ही चल रही है। मंत्री बनने के महीनों बाद भी प्रभुजी अभी लोगों से यही पूछ रहे हैं कि ट्रेन में बेटिकट यात्रियों को कैसे पकड़ा जाए? लेकिन जनता सबसे ज्यादा आहत इन मोबाइल कंपनियों की धोखाधड़ी से हैं। इनके भेजे जाने वाले बिल और प्लान भी इतने प्रकार के हैंं कि सरकार को इसे समझने के लिए भी उच्च शिक्षा कार्यक्रम के तहत एक कोर्स शुरु कर देना चाहिए। मोदी सरकार ने तो इन कंपनियों से लाइसेंस के नाम पर मोटा पैसा वसूल कर लिया लेकिन अब यह निर्दयी कंपनियों लोगों की जान निकाल रही है।


मोदी जी ने इन्हीं कंपनियों के जरिए 'डिजिटल भारत' का सपना देखा है। अगर उन्हें जमीनी हकीकत पता नहीं हो तो इन कंपनियों के बारे में जरा आम लोगों के बीच जाकर पता करें। उन्हें कोई नया ही जुमला सुनाई देगा। पहले लोगों को कहते सुनते थे कि पुलिस से ज्यादा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है! लेकिन अब लोग कहते हैं कि सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार और भ्रष्ट यह मोबाइल कंपनियां है! क्योंकि इनके बिना किसी भी आदमी का काम नहीं चल सकता, जिसका फायदा यह कंपनियां उठा रही हैं। डिजिटल भारत के तहत अगर इन कंपनियों के हाथ में आम उपभोक्ताओं की गर्दन पकड़ा दी गई तो यह उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी से भी ज्यादा लूटने की क्षमता रखती है। क्योंकि यह वह काले अंग्रेज है जो करेले तो है हीं उपर से नीम चढ़े हैं। शोषण करना इनका नस—नस में हैं। इन्होंने अपनी सेवाओं को इतना अपग्रेड कर लिया है कि पहले तो बिल के नाम पर आपको जख्म देंगे। और जब आप इनके कस्टमर केयर में इसके इलाज के लिए फोन लगाओंगे तो उसका इलाज तो नहीं होगा लेकिन उसके भी पैसे काट लेंगे। अभी तक यह मोदी सरकार आम जनता की परेशानियों के आगे विफल साबित हुई है। वह न तो इन मोबाइल कंपनियों पर लगाम लगा पा रही है और न ही बीएसएनएल को ऐसा बना रही है कि इन प्राइवेट कंपनियां के विकल्प के रुप में उसे खड़ा किया जा सके। इसलिए मोदी का 'डिजिटल भारत' कहीं इन उद्योगपतियों के लिए पैसा कमाने का साधन न बन जाएं। ​

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