Thursday, February 12, 2015

शादी का अनाप—शनाप खर्च

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे की शादी अभी हाल ही में हुई है। दिल्ली में हार की वजह से शादी की धूम—धाम थोड़ी कम हुई लेकिन अब पता चला है कि गुजरात में होने वाले रिसेप्शन में 6,500 से ज्यादा वीआईपी लोगों को बुलाया गया है। इसके लिए बकायदा वहां पर एक पुराने क्लब को उनके मेंबर के लिए भी बंद कर दिया गया। इसके पहले भाजपा नेता नितीन गडकरी भी अपने बेटे की आलीशान शादी के लिए चर्चा में रहे थे। ऐसे नामों में बहुत से नेता है लालू से लेकर मुलायम सिंह तक की फौज खड़ी है। हालांकि जब इन नेताओं से पूछोगे कि आप राजनीति में किसका प्रतिनिधत्व करते हो तो बड़े गर्व से कहेंगे कि हम गरीबों से जुड़े लोग है, जमीन से जुड़े लोग है। लेकिन जनता जानती है कि राजनीति में आने के बाद अब इनके पांव जमीन पर नहीं पड़े रहे हैं।

आजकल की शादियों में तो यह फिजूल खर्ची और बढ़ गई है। दिल्ली के आसपास रहने वाले किसान जिनके जमीन के दाम बढ़ने से उनको काफी पैसा मिला है अब उनके बच्चे हेलीकाप्टर में बैठकर दुल्हन लेने जाते हैं। यह मूर्खता नहीं है तो क्या है। यह लोग इस पैसे से अपने विकास करने के बजाय उसे व्यर्थ पानी की तरह बहा रहे हैं। शादी में कोई कितना खर्च करता है या कितना दिखावा करता है, यह उसका निजी मामला हो सकता है। किंतु जब कोई व्यक्ति राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हो।सामाजिक जीवन जी रहा हो। जिसका अस्तित्व ही उस पर टिका हो। जो राजनीति में आया ही इसलिए हो कि उसे समाजसेवा करनी है। जो खुद को समाजवादी कहता हो। वह अगर ऐसे काम करें तो इस पर बोलना जरुरी हो जाता है।


हमारे देश में पहले दहेज एक सामाजिक बुराई थी। लेकिन कानूनी की सख्ती की वजह से अब इसने दूसरा रुप धारण कर लिया है। अब लोग खुले आम दहेज मांगने से तो बच रहे हैं। लेकिन शादी में होने वाले खर्च ने इसकी जगह ले ली है। लड़की वालों पर शादी का यह खर्च कुछ जरुरत से ज्यादा ही पड़ता है। अगर लड़की के मां—बाप दहेज नहीं भी दे रहे हैं तो भी शादी के खर्च से उनकी कमर टूट जाती है। हालांकि शादी में खर्च लड़की की तरफ से हो या लड़के की तरफ से दोनों ही गलत हैं। अमीर लोग तो इस शादी में होने वाले खर्च को सह लेते हैं लेकिन मध्यमवर्ग और गरीब आदमी पर इसकी मार ऐसी पड़ती है कि वह जिंदगी भर नहीं उठ पाता। जो आदमी जिदंगी भर थोड़ा बहुत धन बचाकर रखता है वह एक ही झटके में इस शाही शादी में खर्च हो जाता है। जिसका कि उसे कोई लाभ भी नहीं मिलता। यह खर्च वह इसलिए करता है कि वह अपनी झूठी शान समाज में दिखा सके। रही सही कसर राजनेताओं की इस तरह की शादी पूरी कर देती है जो कि समाज में एक गलत संदेश देती है।

यह शादी का खर्च कई बार तो इस हद तक पहुंच जाता है कि लोगों को अपन घर—जमीन तक बेचनी पड़ जाता है। जिस तरह दहेज एक सामाजिक बुराई है उसी तरह शादी में होनेवाला यह अनाप शनाप खर्च भी एक बुराई है। जो कि कई परिवारों को तबाह कर देता है। अगर दो इंसान अपना जीवन शुरु कर रहे हैं तो उसके लिए यह अनाप शनाप खर्च की जरुरत क्या है? क्या यह कार्यक्रम सादगी से नहीं हो सकते?  क्या यह पैसा उन दोनों की जिंदगी बनाने में नहीं लगाया जा सकता? मैं तो यहां कहना चाहूंगा कि सरकार शादी में होने वाली इस फिजूल खर्ची से सख्ती से निपटे। हो सके तो शादी पर होने वाली इन फिजूल खर्ची पर रोक लगाए। ऐसा करके वह कई परिवारों को तबाह होने से बचा सकती है। समाज में अमीरी—गरीबी का भेद मिटा सकती है।


No comments: