Monday, July 6, 2015

डिजिटल भारत और मोबाइल कंपनियों की मनमानी

मोदी सरकार के बनते ही लोगों को थोड़ी उम्मीदें जगी थीं कि अब उनकी समस्या हल होगी। लेकिन वह अभी भी जस की तस बनी है। अंबानी, मित्तल, बिड़ला पहले कांग्रेस के प्रिय थे अब मोदी के हो गए हैं और अब उनमें एक नया नाम अडानी का भी जुड़ गया है। मोदीजी 'डिजिटल इंडिया' का सपना देख रहे हैं और ये सारी प्राइवेट कंपनियां  उसके जरिए अपनी जेब भरने का सपना देख रही हैं। केंद्रीय दूर संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद सरकार में आने से पहले कांग्रेस की लूट को कोसते थे, अब सरकार में एक साल से मंत्री बनकर यह बता रहे हैं कि पिछली सरकार ने बीएसएनएल को कैसे तबाह किया? उसे कितना लूटा गया। लेकिन 1 साल बाद भी वह यह नहीं बता पाएं हैं कि हमने लूटा हुआ कितना माल वापस करवा लिया और जिन्होंने लुटवाया था वह कौन है, और उन्हें क्या सजा मिल रही है? लेकिन आम नागरिक होने के नाते मैं इस मोदी सरकार से पूछना चाहता हूं कि पहले कि सरकार को तो हमने उसके किये कि सजा दे दी! उसे अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया। लेकिन अब इस सरकार का क्या करें? यह तो एक साल से यूं ही हाथ पर हाथ धरकर बैठी हुई दिखाई देती है। आम आदमी की समस्याएं अभी भी जस की तस बनी हुई है।

मोबाइल कंपनियों ने तो माना लोगों का जीवन दुभर कर रखा है। किसी भी व्यक्ति से पूछ ​लीजिए चाहे वह प्रोपेड ग्राहक हो या पोस्टपेड, उसका बिल निरंतर गति से बढ़ रहा है। यह गति हमारे ट्रेनों की अधिकतम रफ्तार से भी तेज हैं जबकि हमारी रेल अभी भी प्रभु के सहारे प्रभु के भरोसे ही चल रही है। मंत्री बनने के महीनों बाद भी प्रभुजी अभी लोगों से यही पूछ रहे हैं कि ट्रेन में बेटिकट यात्रियों को कैसे पकड़ा जाए? लेकिन जनता सबसे ज्यादा आहत इन मोबाइल कंपनियों की धोखाधड़ी से हैं। इनके भेजे जाने वाले बिल और प्लान भी इतने प्रकार के हैंं कि सरकार को इसे समझने के लिए भी उच्च शिक्षा कार्यक्रम के तहत एक कोर्स शुरु कर देना चाहिए। मोदी सरकार ने तो इन कंपनियों से लाइसेंस के नाम पर मोटा पैसा वसूल कर लिया लेकिन अब यह निर्दयी कंपनियों लोगों की जान निकाल रही है।


मोदी जी ने इन्हीं कंपनियों के जरिए 'डिजिटल भारत' का सपना देखा है। अगर उन्हें जमीनी हकीकत पता नहीं हो तो इन कंपनियों के बारे में जरा आम लोगों के बीच जाकर पता करें। उन्हें कोई नया ही जुमला सुनाई देगा। पहले लोगों को कहते सुनते थे कि पुलिस से ज्यादा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है! लेकिन अब लोग कहते हैं कि सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार और भ्रष्ट यह मोबाइल कंपनियां है! क्योंकि इनके बिना किसी भी आदमी का काम नहीं चल सकता, जिसका फायदा यह कंपनियां उठा रही हैं। डिजिटल भारत के तहत अगर इन कंपनियों के हाथ में आम उपभोक्ताओं की गर्दन पकड़ा दी गई तो यह उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी से भी ज्यादा लूटने की क्षमता रखती है। क्योंकि यह वह काले अंग्रेज है जो करेले तो है हीं उपर से नीम चढ़े हैं। शोषण करना इनका नस—नस में हैं। इन्होंने अपनी सेवाओं को इतना अपग्रेड कर लिया है कि पहले तो बिल के नाम पर आपको जख्म देंगे। और जब आप इनके कस्टमर केयर में इसके इलाज के लिए फोन लगाओंगे तो उसका इलाज तो नहीं होगा लेकिन उसके भी पैसे काट लेंगे। अभी तक यह मोदी सरकार आम जनता की परेशानियों के आगे विफल साबित हुई है। वह न तो इन मोबाइल कंपनियों पर लगाम लगा पा रही है और न ही बीएसएनएल को ऐसा बना रही है कि इन प्राइवेट कंपनियां के विकल्प के रुप में उसे खड़ा किया जा सके। इसलिए मोदी का 'डिजिटल भारत' कहीं इन उद्योगपतियों के लिए पैसा कमाने का साधन न बन जाएं। ​

Thursday, April 30, 2015

बाबा की पुत्रजीवक औषधि

मोहन सूर्यवंशी

बाबा रामदेव की पुत्रजीवक औषधि पर हंगामा मच गया है। हमारे देश के विपक्षी दल के नेता कोई रचनात्मक काम तो करते नहीं किंतु सरकार के विरोेध का कोई मौका वह हाथ से नहीं छोड़ते। हर बात पर विरोध करने की आदत ही उन्हें समेटकर इतनी कम सीटों की संख्या पर ले आई है। जब सरकार पर सीधे प्रहार नहीं कर पाते तो सरकार के आस—पास के लोग जो कि उनके निकट है, उन पर ही प्रहार करने लगते हैं। हाफिज और वैदिक की मुलाकात जैसे मामूली बात पर भी तीन दिन तक संसद ठप कर दी थी। अब हाल ही का मामला बाबा रामदेव की 'पुत्रजीवक बीज' औषधि का है। राज्यसभा में जेडी (यू) महासचिव केसी त्यागी ने आरोप लगाया कि बाबा रामदेव की दिव्य फार्मेसी 'पुत्रजीवक बीज' के नाम से बेटा पैदा करने की दवा बेचती है और इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। हालांकि बाबा रामदेव की इस मामले पर तुरंत सफाई भी आ गई। फेसबुक पर उन्होंने बताया कि इस दवाई में पुत्रजीवक औषधि प्रयोग की है। जिसका उपयोग नि:संतान लोग बच्चे पैदा करने के लिए कर सकते हैं। इसका पुत्र से कोई लेना देना नहीं है, इसलिए दवाई का नाम शास्त्र के अनुसार 'पुत्रजीवक' रखा गया है। 


बाबा रामदेव की यह बात सत्य है लेकिन क्या वह यह नहीं जानते कि हमारे देश में कितने अल्पज्ञानी लोग है।  जिस देश में इतने अंधभक्त लोग है कि आसाराम के लड़के को वह कृष्ण का अवतार मानते हो, जो लड़के पैदा करने के लिए लड़कियों को गर्भ में ही मार देते हो। जो लड़का पैदा होने पर खुशी मनाते हो और लड़की के पैदा होने पर गम में डूब जाते हो, वहां पर लोग इस दवाई के नाम से भ्रमित क्यों नहीं होंगे। मोबाइल कंपनी से लेकर देश की नामी गिरामी कंपनियां अपने विज्ञापन में इस तरह लोगों को मूर्ख बना रही है। शब्दों का ऐसा मायाजाल बनाती है कि 10 में से 9 लोग उसमें फंस जाते हैं। कोई बाद में मुकदमा न ठोक सकें इसलिए या तो स्टार का चिन्ह बना देते हैं या कंडीशन अप्लाई कर देते हैं। आज भी गांवों ही नहीं शहरों में भी लोग बीमार होने पर झाड़—फूंक कराने पर ज्यादा विश्वास करते हैं। अभी हाल ही में बाबा रामदेव ने पाकिस्तान से भेजी ग्ई सामग्री में बीफ के मसाले को दिखाकर, पाकिस्तान की आलोचना की थी। लेकिन क्या वह नहीं जानते कि बीफ के मसाले में बीफ नहीं होता सिर्फ शाकाहारी मसाला होता है, जिसे चाहे तो आप सब्जियों में भी डाल सकते हैं। जब बाबा खुद दिग्भ्रमित हो जाते हैं तो 'पुत्रजीवक' औषधि के नाम से जनता क्यों नहीं हो सकती? व्यापारिक उद्देश्य के लिहाज से दवा का यह नाम एक दम उपयुक्त है। इस नाम से यह दवाई खूब जोर—शोर से बिकेगी। गांव—गांव में जो बाबा की दुकान खुली हुई है वहां उनका सामान बेचने वाले लोग, ग्राहकों को यही बताएंगे कि इस खाओ और पुत्र पैदा करो।  लेकिन बाबा जैसे सामाजिक लोगों को इस तरह के नामों में सावधानी बरतनी चाहिए। इस दवाई का नाम जितने जल्दी हो सके बदल दिया जाना चाहिए। 

Monday, April 13, 2015

गैस की काला बाजारी!

गैस की कालाबाजारी दिल्ली में बहुत बढ़ गई हैं। हालांकि सब्सिडी की कैश स्कीम ने गैस की कालाबाजारी को बहुत कम कर दिया है। लेकिन दिल्ली की जनता अभी भी इन गैस एजेंसियों से त्रस्त हैं। इन गैस एजेसियों का वैसा ही हाल है जैसा कि किसी आटो वाले का है। उपभोक्ता को परेशान किए बिना इनका काम नहीं चलता। व्यवहार ऐसा कि जैसा लगता है कि आटो के परमिट और गैस एजेंसी अलॉट करते समय गुंडे होने का प्रमाण पत्र लिया जाता हो। अब तो दिल्ली में 'आप' की सरकार का राज है। लेकिन व्यवस्था में अभी भी कोई परिवर्तन होते दिखाई नहीं दे रहा है। 

गैस बुक कराने पर एक तो उसकी डिलीवरी लेट की जाती है, उपर से कम गैस अलग। दिल्ली में अधिकतर लोग बाहर से आए होते हैं, नौकरीपेशा होते हैं, अकेले रहते हैं। जब गैस वाला आता है तो या तो वह लोग घ्रर पर नहीं होते या फिर घर में अकेली महिलाओं को ही उन्हें हेंडल करना होता है। गैस वाले कभी भी अपने साथ तोलने वाली मशीन नहीं लाते। उपर से इन लोगों का व्यवहार और रहन सहन ऐसा होता है, महिलाएं इनको देखकर ही घबरा जाएं। जो लोग थोड़े दबंग टाइप के होते हैं, उन्हें तो यह बाकायदा पूरी भरी हुई गैस देते हैं लेकिन बाकियों का बुरा हाल करते हैं। उनके सिलेंडर में 3 से 5 किलो गैस कम होना तो मामूली सी बात है। कुछ जागरुक लोग इन्हें तोलने को कहें तो यह लड़ाई झगड़े पर उतर आते हैं। सीधे—साधे लोगों का फायदा उठाकर उन्हें गैस कनेक्शन काट देने तक की धमकी देते है। यहां पर यह बताना जरुरी नहीं कि अधिकतर गैस एजेंसी वाले भी इनके साथ मिले होते हैं।  मुनाफे में बराबर की हिस्सेदारी करते हैं। इस वजह से भी लोग कंम्पलेंट करने के झंझट में नहीं फंसते। कुछ लोग अगर बहुत ही लीगल कार्रवाई पर उतर आएं तो गैस एजेंसी के मालिक उनके घर तक पहुंच जाते हैं। हाथ—पांव जोड़ते हैं या फिर न मानने पर धमकी देने लगते हैं। 


सबसे ज्यादा बुरा अनुभव तो आपको गैस कनेक्शन लेते समय ही हो जाएगा। वहां पर दादा टाइप लोग बैठे होते हैं जो उपभोक्ताओं को भिखारियों की लाइन की तरह ट्रीट करते हैं। यही नहीं गैस कनेक्शन के साथ आपको जबरदस्ती चूल्हा, पाइप  और पता नहीं कया—क्या लेना अनिवार्य कर देते हैं। मुझे तो दिल्ली में गैस कनेक्शन के साथ एजेंसी से चावल भी लेने पड़े थे। इन सब के बाद असली खेल होता है गैस पहुंचाने वालों को। एक—दो बार में वह गैस लेने वाले आदमी को समझ लेते हैं। दंबग हुआ तो उसके घर ठीक—ठाक भरी हुई गैस पहुंचा देंगे बाकियों की तो वह नाक में दम कर देंगे। एक तरफ लीगल गैस कनेक्शन वालों की डिलीवरी करेंगे तो दूसरी तरफ वहीं पर ब्लैक में गैस बेचने वाली दुकानों से लेकर अन्य लोगों तक को भी बेंचेगे। 

अब सवाल उठता है कि जिस देश में लोग भ्रष्टाचार करने के नायाब तरीके खोज लेते हैं। मंत्रालयों तक में मंत्रियों के नाक के नीचे के कागज चोरी कर लेते हैं। उस देश के प्रतिभाशाली लोग क्या गैस की टंकी की एक ऐसी सील नहीं बना सकते कि गैस की चोरी रुक सकें?  क्या हमारी देश की बड़ी—बड़ी गैस सप्लाई करने वाली कंपनियां एक ऐसी सील नहीं बना पा रही कि जिससे गैस चोरी करने वाले पकड़े जाएंगे? हमारे देश के आईटी विशेषज्ञ एक ऐसा साफ्टवेयर नहीं बना पा रहे कि एजेंसी और गैस पहुंचाने वाला बुकिंग होने पर टंकियों का ज्यादा देर अपने पास न रख सकें? मेक इंडिया के नाम पर विदेशी कंपनियों को बुलाकर यह सामान बनवाने वाले नेता कम से कम पहले गैस की एक ठीक—ठाक सील तो बनवा दें? गैस एजेसियों का फर्जीवाड़ा इतने खुलेआम होता है, आखिर इसके लिए जिम्मेदारी सरकारी नौकरों की जिम्मेदारी तय करके, काम न करने पर उन्हें नौकरी से क्यों नहीं निकाला जाता? आखिर उपभोक्ता ही अपनी जान पर रिस्क लेकर इनकी शिकायत क्यों करें? दिल्ली में लाखों गैस कनेक्शन हैं और देश में करोड़ों, अगर 2 किलो गैस प्रति सिलिंडर भी चोरी का आंकड़ा ले तो यह हजारों करोड़ की चोरी होगी। क्या सरकार की इस चोरी को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं है? यह हजारों करोड़ का गोलमाल आखिर कब रुकेगा?

Monday, February 23, 2015

फैशन बना आंदोलन!

मोहन सूर्यवंशी
अन्ना हजारे एक बार फिर से आंदोलन कर रहे हैं। हमारे देश का न्यूज हंगरी मीडिया उन्हें हाथों हाथ ले रहा है। क्योंकि आजकल मीडिया एक ही नीति पर काम कर रहा है 'फूट डालो और शासन करो'। अन्ना ने जब भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया था तो जनता उनके साथ सीधे जुड़ गई थी। लेकिन उसके बाद इस आंदोलन का जो हश्र हुआ वह सबके सामने है। इस आंदोलन को चलाने वाले लोगों ने अपने बायोडाटा मजबूत किए और सारे के सारे अब राजनीति में सेट हो गए हैं। कोई मुख्यमंत्री बन गया है तो कोई मंत्री। किसी की कवितापाठ की दुकान ज्यादा चलने लगी है तो कोई कमिश्नर नहीं बन पाया इसलिए मुख्यमंत्री तक का चुनाव लड़ लिया। इस तरह अन्ना के सभी बच्चे सेट हो गए हैं। अब बेचारे बचे अन्ना तो उन्हें इस बात का बहुत दुख है कि वह तो गुड़ रह गए और चेले शक्कर हो गए। इसलिए अब वह फिर से आंदोलन की राह पकड़ रहे हैं। उनका साथ देनेवालों की भी कमी नहीं है। आखिर  कमी हो भी क्यों अन्ना के साथ आंदोलन करना मतलब राजनीति में अपनी सीधी एंट्री करवाना। एक ही झटके में मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक बन जाना।

लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह के आंदोलन हर बार सफल नहीं होते। जिस समय अन्ना और उनकी टीम ने आंदोलन किया था, जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त थी। वह किसी तरह इससे छुटकारा पाना चाहती थी। उसका गुस्सा इतना ज्यादा बढ़ गया था कि वह कहीं भी फूटने के लिए तैयार बैठा हुआ था। जिसका फायदा अन्ना और उनकी टीम ने उठाया। मोदी सरकार के प्रचंड बहुमत से विजय होने में भी इसका बहुत योगदान रहा है। इस बहती गंगा में तो केजरीवाल ने हाथ ही नहीं धोया बल्कि डुबकी भी लग ली, जिससे कि वह एक ही झटके में सीधे मुख्यमंत्री बन बैठे। लेकिन अब ऐसा बारबार नहीं होने वाला है। अभी जनता ने अपने वोट का प्रयोग करके देश में सरकार बनाई है। यह सरकार उसी की है इसलिए अन्ना का यह कदम जनता को नागवार ही गुजरेगा। अन्ना की टीम को भी जनता ने दिल्ली में सत्ता की मलाई चखा दी है। वह देखना चाहती है कि अन्ना और उनकी टीम आंदोलन के समय जोजो बातें करती थी क्या वह वाकई में हकीकत में बदल सकती है या नहीं।


लेकिन जैसा अंदेशा था वैसा ही हो रहा है। केजरीवाल की टीम को जैसे ही सत्ता का सुख मिला उनके हाव भाव बदल गए हैं। जिन पर सवार होकर वह दिल्ली की सत्ता तक पहुंचे उसी मीडिया की एंट्री उन्होंने सचिवालय में बंद करवा दी है। पत्रकारों को दलाल तक कहने पर उतार आए हैं। आप के नेता जो कि कहते नहीं थकते थे कि वह आम आदमी है, उन्हें बंगला, गाड़ी नहीं च​ाहिए। अब वह दिल्ली में सबसे बड़े बंगले देख रहे हैं ताकि वहां बैठकर पुराने नेताओं की तरह जनता की समस्या हल कर सके। अर्थात अन्ना और उसकी टीम ने जिन मुद्दों को लेकर आंदोलन किए और जिन मुद्दों के सहारे वह सत्ता तक पहुंचे वह सब वही रह गए। बाबा रामदेव के आंदोलन का भी यही हाल हुआ। काला धन तो ला नहीं पाएं लेकिन पता चला है कि उनका व्यापार 2 हजार करोड़ को पार कर गया है। सरकार सम्मान लिए उनकी हां के इंतजार में खड़ी है। हरियाणा के ब्रांड एबेसडर से लेकर पता नहीं क्याक्या बनने वाले है? लेकिन जनता को अभी तक कालापीला कुछ भी हाथ नहीं लगा है। इसलिए अन्ना का यह भूमि आंदोलन भी एक दिखावा से ज्यादा कुछ नहीं लगता। वैसे भी जनता ने अपने नुमाइंदे संसद में भेज दिए हैं, वह ही तय कर कि इस देश में कौनसी नीतियां बनेगी और कौनसे काम होंगे। अगर पक्ष और विपक्ष इसमें नाकाम होते हैं तो उसका फायदा अन्ना और केजरीवाल जैसे लोग उठा लेंगे। लेकिन अभी यह वक्त नहीं आया है।

Thursday, February 12, 2015

शादी का अनाप—शनाप खर्च

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे की शादी अभी हाल ही में हुई है। दिल्ली में हार की वजह से शादी की धूम—धाम थोड़ी कम हुई लेकिन अब पता चला है कि गुजरात में होने वाले रिसेप्शन में 6,500 से ज्यादा वीआईपी लोगों को बुलाया गया है। इसके लिए बकायदा वहां पर एक पुराने क्लब को उनके मेंबर के लिए भी बंद कर दिया गया। इसके पहले भाजपा नेता नितीन गडकरी भी अपने बेटे की आलीशान शादी के लिए चर्चा में रहे थे। ऐसे नामों में बहुत से नेता है लालू से लेकर मुलायम सिंह तक की फौज खड़ी है। हालांकि जब इन नेताओं से पूछोगे कि आप राजनीति में किसका प्रतिनिधत्व करते हो तो बड़े गर्व से कहेंगे कि हम गरीबों से जुड़े लोग है, जमीन से जुड़े लोग है। लेकिन जनता जानती है कि राजनीति में आने के बाद अब इनके पांव जमीन पर नहीं पड़े रहे हैं।

आजकल की शादियों में तो यह फिजूल खर्ची और बढ़ गई है। दिल्ली के आसपास रहने वाले किसान जिनके जमीन के दाम बढ़ने से उनको काफी पैसा मिला है अब उनके बच्चे हेलीकाप्टर में बैठकर दुल्हन लेने जाते हैं। यह मूर्खता नहीं है तो क्या है। यह लोग इस पैसे से अपने विकास करने के बजाय उसे व्यर्थ पानी की तरह बहा रहे हैं। शादी में कोई कितना खर्च करता है या कितना दिखावा करता है, यह उसका निजी मामला हो सकता है। किंतु जब कोई व्यक्ति राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हो।सामाजिक जीवन जी रहा हो। जिसका अस्तित्व ही उस पर टिका हो। जो राजनीति में आया ही इसलिए हो कि उसे समाजसेवा करनी है। जो खुद को समाजवादी कहता हो। वह अगर ऐसे काम करें तो इस पर बोलना जरुरी हो जाता है।


हमारे देश में पहले दहेज एक सामाजिक बुराई थी। लेकिन कानूनी की सख्ती की वजह से अब इसने दूसरा रुप धारण कर लिया है। अब लोग खुले आम दहेज मांगने से तो बच रहे हैं। लेकिन शादी में होने वाले खर्च ने इसकी जगह ले ली है। लड़की वालों पर शादी का यह खर्च कुछ जरुरत से ज्यादा ही पड़ता है। अगर लड़की के मां—बाप दहेज नहीं भी दे रहे हैं तो भी शादी के खर्च से उनकी कमर टूट जाती है। हालांकि शादी में खर्च लड़की की तरफ से हो या लड़के की तरफ से दोनों ही गलत हैं। अमीर लोग तो इस शादी में होने वाले खर्च को सह लेते हैं लेकिन मध्यमवर्ग और गरीब आदमी पर इसकी मार ऐसी पड़ती है कि वह जिंदगी भर नहीं उठ पाता। जो आदमी जिदंगी भर थोड़ा बहुत धन बचाकर रखता है वह एक ही झटके में इस शाही शादी में खर्च हो जाता है। जिसका कि उसे कोई लाभ भी नहीं मिलता। यह खर्च वह इसलिए करता है कि वह अपनी झूठी शान समाज में दिखा सके। रही सही कसर राजनेताओं की इस तरह की शादी पूरी कर देती है जो कि समाज में एक गलत संदेश देती है।

यह शादी का खर्च कई बार तो इस हद तक पहुंच जाता है कि लोगों को अपन घर—जमीन तक बेचनी पड़ जाता है। जिस तरह दहेज एक सामाजिक बुराई है उसी तरह शादी में होनेवाला यह अनाप शनाप खर्च भी एक बुराई है। जो कि कई परिवारों को तबाह कर देता है। अगर दो इंसान अपना जीवन शुरु कर रहे हैं तो उसके लिए यह अनाप शनाप खर्च की जरुरत क्या है? क्या यह कार्यक्रम सादगी से नहीं हो सकते?  क्या यह पैसा उन दोनों की जिंदगी बनाने में नहीं लगाया जा सकता? मैं तो यहां कहना चाहूंगा कि सरकार शादी में होने वाली इस फिजूल खर्ची से सख्ती से निपटे। हो सके तो शादी पर होने वाली इन फिजूल खर्ची पर रोक लगाए। ऐसा करके वह कई परिवारों को तबाह होने से बचा सकती है। समाज में अमीरी—गरीबी का भेद मिटा सकती है।


Thursday, February 5, 2015

कब आएगी जनता की सरकार!

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 30 करोड़ लोग अब भी अत्यंत गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं दूसरी तरफ खबर है कि हमारा देश ब्रिटेन और रुस को टक्कर दे रहा है। यह टक्कर वह अरबपतियों की सूची में दे रहा है। अर्थात भारत में 6000 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति रखने वालों की लोगों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। अगर इन सारे भारतीय अरबपतियों की कुल संपत्ति जोड़ दी जाए तो वह 15 लाख 96 हजार करोड़ रुपए होती है। 

कितना हास्यास्पद है कि जिस देश में 40—50 करोड़ 20 रुपए भी रोज नहीं ​कमा पाते वहां पर एक आदमी के पास ही 6000 कऱोड़ रुपए की संपत्ति है। उसके बाद भी अंबानी, टाटा, बिड़ला, मित्तल सभी लोगों को घाटा ही हो रहा है। क्योंकि यह लोग भी निरंतर अपने उत्पादों के दाम बढ़ाते रहते हैं। इस असमानता की वजह से ही हमारे देश में राजनीतिक भूचाल भी आया हुआ है। कांग्रेस का पूरे देश से सफाया होने की सबसे बड़ी वजह यही है। कांग्रेस की सरकार के समय भी आम जनता गरीबी, मंहगाई, रिश्वतेखारी, अव्यवस्था से त्रस्त थी। इन सबसे त्रस्त होकर ही उसने भाजपा को वोट दिए। भाजपा ने भी लोकसभा चुनाव में जनता को खूब सपने दिखाए लेकिन वह सपने आखिरकार सपने ही साबित हो रहे हैं। मोदी सरकार को बने 9 महीने हो गए हैं लेकिन आम जनता के हाथ अभी तक कुछ नहीं लगा। सिर्फ उन पर इतनी ही मेहरबानी हुई है कि जिन गरीब लोगों को बैंक वाले भगा देते थे अब वह उनका एकाउंट खोल दे रहे हैं। शायद मोदीजी को लगा हो कि हमारे देश के गरीबों के पास इतना पैसा है कि उनकी सबसे बड़ी प्राब्लम इन्हें रखना ही है?

अब जबकि दिल्ली के चुनाव होने वाले है। सारी राजनीतिक पार्टियां उन्हें फिर से सपने दिखाने में लग गई है। कांग्रेस की जब दिल्ली में सरकार थी तो उसकी मुख्यमंत्री ने दिल्ली को पेरिस बनाने के चक्कर में आम आदमी का जीना हराम कर दिया । अब सरकार नहीं है तो दिल्ली की आम जनता की समस्या उन्हें समझ आ रही है। तभी वह बिजली से लेकर हर चीज के दाम अनाप—शनाप कम करने के चुनावी विज्ञापन दे रहे हैं जो कि एक मजाक ही लगता है।  भाजपा वाले भी दिल्ली में सरकार बनाने के लिए बैचेन हैं लेकिन केंद्र की सरकार बनने के बाद 9 महीने में क्या किया तो उसका उत्तर वह जनता को नहीं दे पा रहे। इसलिए सबसे फायदे में  'आप' वाले चल रहे हैं। क्योंकि अभी तक जनता ने इनको परखा नहीं है। शायद यह लोग भी आगे चलकर अपने राजनीतिक भाईयों की तरह ही हरकते करने लग जाए और अंत में उनकी ही गति को प्राप्त हो।

लेकिन अंत में यही कहना चाहूंगा कि सारे राजनीतिक दल चुनाव से पहले आम जनता को बेवकूफ बनाते हैं। पहले तो वह वादा करते हैं कि जनता की आम समस्याओं को दूर करेंगे। लेकिन सरकार बनने के बाद बताते हैं कि सारी समस्याओं को हल आम जनता की नाक में दम करना ही। जब तक आम जनता की रोटी, बिजली, पानी मंहगा नहीं होगा, देश का विकास नहीं हो सकता। सभी राजनीतिक दल इस सिद्धांत पर चलते हैं तभी तो हमारे देश के अरबपति फल—फूल रहे हैं अमीर और अमीर होेते जा रहा है और गरीब की हलात पतली। आज इस स्थिति में है कि वह रुस और ब्रिटेन तक को टक्कर दे रहे हैं जबकि गरीब सरकार बदल—बदल कर परेशान है कि कोई तो उसका भला करे।

Tuesday, February 3, 2015

लड़की का रेप के लिए न्यौता, लड़के भी तैयार!



हमारा देश कितना मार्डन हो रहा है। इसका अंदाज आप इस वीडियो को देखकर लगा सकते हैं।




एक न्यूज चैनल की वेबसाइट पर एक खबर लगी है। जिसमें लड़की कह रही है कि 'आओ मेरा रेप करो'। जिज्ञासा वश उस वीडियो को देखा। उसमें एक लड़की करीना कपूर स्टाइल में मर्दों को उकसा रही है कि वह रेप के लिए तैयार है, वह आकर उसका रेप कर सकते है। 

इस वीडियो के देखने के ​बाद ठीक नहीं लगा। माना कि हमारे देश में सेक्स को लेकर लोगों में काफी उतावलापन रहता है। इसकी वजह सदियों से औरत—मर्दों को अलग रखने की प्रथा भी हो सकती है। जिसकी वजह से मर्द, औरतों में कुछ जरुरत से ज्यादा ही दिलचस्पी दिखाते हैं! हाल ही में गूगल ने आंकड़ों में बताया था कि पाकिस्तान जैसे देश में ही सेक्स शब्द सबसे ज्यादा ढूंढा जाता है।  इसका उपाय धीरे—धीरे समाज को खोलना ही है। औरत को एक अनूठी चीज़ बनाकर रखना और उसे घर में बंद रखना भी कहीं न कहीं रेप को बढ़ावा देता है।

Saturday, January 31, 2015

आम आदमी सम्मान!


मोहन सूर्यवंशी

पता चला कि योग गुरु बाबा रामदेव और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने पद्म सम्मान लेने से इनकार कर दिया। बाद में यह खबर भी आधी गलत साबित हुई। सरकार की तरफ से आई खबरों से पता चला कि बाबा रामदेव के नाम पर सम्मान के लिए तो विचार भी नहीं किया गया था। बाबा ने टीवी खबरों को ही सही समझकर खुद ही मियां मिट्ठू बन बैठे। लेकिन यहां पर यह सवाल उठता है कि क्या इन दोनों सन्यासियों ने ऐसा करके अपनी उदारता दिखाई या इन सम्मानों और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का अपमान किया। सम्मान मिलना खबर है तो सम्मान ठुकराना उससे बड़ी खबर है।